गुड़ी पिण्डवा पर्व और पेशवा की जीत


आज कालिंजर का प्रसिद्ध " गुड़ी पिण्डवा पर्व " भी है । इस दिन बुन्देलखण्ड सेनाओ ने पेशवा नाना साहब के कहने पर शहडोल , ब्रजराजनगर के रास्ते नवाब अलावर्दी खान पे हमला कर नागपुर सरदार राघोजी भोंसले को अट्टक की जाजपुर जेलखाने से छुड़ाया था ।

अश्विनी चैत्र प्रथमा , अप्रैल 13 1741
1741 - 1743 मुहिम और कट्टक विजय , ओड़िसा ।
इस मुहिम के सूत्रधार थे सेनानायक भट्ट श्रीमंत भास्कर पंडित , खोराडकर , एवम श्रीमंत शीशराव भट्ट , कालिंजर बैरागी वंश एवम हिम्मतदार पिंडारी सेना जो बाद में बंगाल एवम ओडिसा के पहले हिन्दू गवर्नर भी हुए । 

इलाकाई कब्जा राघोजी भोंसले को देने में पेशवा नाना साहब का कहना था कि इसे हुज़रात ने जीता है तो इसका संचालन पेशवा की निजी जागीर अनुरूप हो , लेकिन राघोजी भोंसले ने कहा कि मुहिम की शुरुवात हमारी है । और रघुजी ने मुहिम से पहले ही बुजुर्ग साहूजी से अपनी बहन को 4 थी पत्नी ( बिन ब्याही ) के रूप में स्वीकार भी करवा लिया । यह 4 थी पत्नी बड़ी कलाकार हुई , नाना साहब के खिलाफ़ , हुज़ूरते के ख़िलाफ़ ही बुजुर्ग साहूजी को भड़काने लगी । 

ख़ैर असली चाल थी कि साहूजी महराज के निरवंशी होने के कारण यह 4 थी ( बिना शादी के ) पत्नी नागपुर के अपने भाई रघुजी भोंसले के पुत्र को अगला छत्रपति नियुक्त कर दे । लेकिन साहूजी महराज भले ही बुजुर्ग थे , लेकिन मुग़लो के पास से पहले पेशवा विश्वनाथ भट्ट द्वारा छुड़ाए जाने को भूले नही थे । सो उन्होंने 2 महीने के अंदर ही हुज़ूरात के कमांडर पेशवा शेशराव भट्ट को गंगा का पहला हिन्दू गवर्नर ( ९०० वर्ष ) में नियुक्त किया ।
अंत तक हमारे साहूजी महराज , स्वराज्य की कमान संभालते रहे , और अंत मे अपने परिवार से ही नया छत्रपति नियुक्त कर ब्रह्मलीन हुए । साहूजी की मृत्यु पर इस 4 थी ( बिन ब्याही ) पत्नी को भी सती होना पड़ा । हालांकि इस कलाकार महिला के कारण दोनों पेशवाओ ( भास्कर पंडित और शेश राव ) को बंगाल विजय का मराठा दरबार खिताब नही मिल पाया , लेकिन कालिंजर और बंगाल में यह दर्ज है , और बड़ा रौबदार वर्णन है ।।

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