Brahman regiment (Army)
आज आज़ाद भारत में #ब्राह्मण समाज के लोगो में ये विचार आते है के जिस तरह जातिगत कुछ रेजीमेंट भारत में है वैसे ब्राह्मण समाज की क्यों नहीं है । जबकि पूर्व से ही ब्राह्मण जो शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत रहे आज़ादी मुगलों से लेकर गोरो तक राजा दाहिर से लेकर पेशवाई तक और मंगल पाण्डेय रानी लक्ष्मीबाई से लेकर आज़ाद और बोस तक क्रांतिकारी रहे ।
तो उसी पर ये लेख है । लेकिन उससे पहले आपको बता दू के अधिकतर रेजिमेंट पूर्व में अंग्रेजो द्वारा बनाए गए है जो कि आज़ादी के बाद अपना लिए गए आज़ाद भारत में कोई भी रेजीमेंट जातिगत नहीं बनाई गई और जो पहले से बनी हुई थी उनमें गैर जातीय भी रखे गए है ।
आज़ाद भारत में काफी ऐसे ब्राह्मण सैनिक हुए जिनके बाद ये मुद्दा काफी समाज में उछला के रेजीमेंट क्यू नहीं है जिनमे कुछ प्रसिद्ध है -:
पूर्व आर्मी जनरल अरुण वैद्य ( आतंकवादी हमले में शहीद हुए)
सेना के पूर्व जनरल जीडी बख्शी
सेना प्रमुख जनरल वीएन शर्मा
ल. जनरल प्रवीण बक्शी
मेजर जनरल एएन शर्मा
लेफ्टिनेंट जनरल जोरावर बख्शी
पूर्व सेनाध्यक्ष योगी शर्मा
कप्तान पुनीत दत्त (जम्मू में शहीद)
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया (कारगिल युद्ध में शहीद)
मेजर सोमनाथ शर्मा (काहमीर युद्ध में शहीद, परमवीर चक्र से सम्मानित
मेजर मनोज पंडी (कारगिल युद्ध में शहीद)
1901 में पहली ब्राह्मण इन्फैंट्री बनी
1903 1st ब्रह्मण बने
1922 62 वीं पंजाबियों, 66 वीं पंजाबियों, 76 वीं पंजाबियों, 82 वीं पंजाबियों और 84 वीं पंजाबियों के साथ एकजुट हुई और 4 वीं / 1 पंजाब रेजिमेंट बन गई।
( ब्राह्मणों को अंग्रेज़ी सरकार ने 1798 से सेना में शामिल करना शुरू करा था पर उस वक़्त वो बंगाल इन्फैंट्री और बाद में बंगाल लाइट इन्फैंट्री उसके बाद ब्राह्मण रेजीमेंट के नाम से जाने गए )
भारत में #ब्राह्मणों के कई लड़ाकू गोत्र हुए हैं। इनमें से प्रमुख भूमिहार (पूर्वांचल और बिहार के लड़ाकू ब्राह्मण) और सारस्वत (पंजाब के ब्राह्मन ) गौतम ब्राह्मण (पक्षिमी उत्तर प्रदेश एव् राजस्थान ) #राजस्थान मे गौतम ब्राह्मण को गुर्जर गौड बोलते है इस समाज से वीर योद्धा शरदवान और क्रपाचार्य हुये और पेशवा ब्राह्मन (मराठवाड़ा के देष्ठ और कोंकण ब्राह्मण) हैं जिनमें बाजीराव पेशवा, नानासाहेब पेशवा जैसे कई मशहूर नाम है। ऐसा ही एक लड़ाकू गोत्र ब्राह्मणों का है पंजाब के #मोहयाल ब्राह्मण । इन मोहयाल पंजाबी ब्राह्मणों को ब्रिटिश और सिख इतिहासकारों ने भारत की सबसे निर्भीक, शेरदिल, लड़ाकू जाति बताया है। भारद्वाज , दिक्षीत ,तिवारी , भूमिहार अनेक गोत्र के ब्राह्मन वीर हुये है
ब्रिटिश इंडिया के समय और आज़ाद भारत में मोहयाल बामनो का फ़ौज में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत की आर्मी में ब्राह्मणों की 2 regiments थीं। एक थी “Ist Brahmins Regiment” और दूसरी Bengal Regiment ( जो नाम की ही बंगाल रेजिमेंट थी, यह पूर्वांचल के भूमिहार ब्राह्मण जो आज भी अपनी बहादुरी के कारण अपने नाम के साथ सिंह लिखते हैं, उनके लिए थी और उनकी संख्या इसमें 90% तक थी)
Ist Brahmins Regiment में ज्यादातर सैनिक मोहयाल बामन या सारस्वत पंजाबी ब्राह्मण ही थे। इस रेजीमेंट को 1942 में बन्द कर दिया गया। ऐसे ही बंगाल रेजिमेंट में भूमिहारों की भरती पर रोक लगा दी गयी । इसका कारण था की 1857 के विद्रोह में इन रेजिमेंटों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियारबन्द विद्रोह किया। फिर 1942 में इन्होंने आज़ादी मांगते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़ो की तरफ से लड़ने को मना कर दिया। ब्रिटिश यह बात समझ चूके थे की आज़ादी के लड़ाई में बलिदान देने और इसका नेतृत्व करने में ब्राह्मण ही सबसे आगे हैं। 1857 में मंगल पाण्डे का विद्रोह, फिर नाना साहेब ब्राह्मण की सेना का लखनऊ और कानपूर की रियासत पर कब्जा , रानी लक्ष्मी बाई , तांत्या टोपे जैसे ब्राह्मण राजाओं का विद्रोह जो अंग्रेजों पर बहुत भारी पड़ा। इसके अलावा भारत रिपब्लिकन आर्मी के प्रमुख पंडित आज़ाद, उनके सहयोगी बिस्मिल , राजगुरु ,BK दत्त आदि, महानतम राष्ट्रवादी क्रन्तिकारी सावरकर और ऐसे ही कई अन्य आदि सभी ब्राह्मण थे और इन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। इसलिए बामन समाज में अंग्रेओं का विश्वास बिलकुल नही रहा। इसलिए अंग्रेज़ो को लगा की यह बामन अगर सेना में रहे तो बार बार विद्रोह करेंगे, इसलिए Ist Brahmins Regiment को बन्द कर दिया गया ।
3rd ब्राह्मण रेजीमेंट का उदय लेफ्टिनेंट कर्नल गुर्थरी के द्वारा 1798 से माना जाता है जिसे पूर्व में 1st बटालियन बाद में बंगाल इन्फैंट्री और उसके बाद ब्राह्मण रेजीमेंट में बदला गया । रेजीमेंट ने इजिप्ट फ्रांस सिंगापुर में अपना योगदान दिया लेकिन विद्रोह के चलते अंग्रेजो ने रेजीमेंट के 100 ब्राह्मण सैनिकों पर केस चलाया और अंत में सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया ( सैनिकों के विद्रोह का कारण मांसाहार था जो ब्राह्मणों के लिए उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निषेध था ) । और इसे बाद में 1922 में पूर्णत्या भंग कर दिया गया । जिसकी जगह 2 और 3 अवध और गौड़ ब्राह्मण ने ली ।
2 और 3 गौड़ ब्राह्मण बटालियन का गठन कुछ समय के लिए किया गया था और जल्द ही इसे भंग कर दिया गया था। यह 1918 में डेसा गुजरात में गठित हुआ, और 1920 में भंग हो गया। और पहला अधिकारी मेजर हेनरी लेन था, जो पहले से ही 1st ब्राह्मण रेजीमेंट की सेवा में था ।
लेफ्टिनेंट कर्नल लेन की गोपनीय रिपोर्ट में कहा गया है कि रेजिमेंट को भंग करने का कारण अवध ब्राह्मणों और गौर ब्राह्मण के बीच अशांति थी।
ये एक संक्षेप इतिहास है इन ब्राह्मण रेजीमेंट्स का और जैसा कि बताया के बागी होते विचारो को देख इन्होंने अंतिम रेजीमेंट 1st ब्राह्मण रेजीमेंट को भी पंजाब रेजीमेंट में विलय कर दिया और 1942 में उसे भंग कर दिया । जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के समय किसी प्रकार का खतरा अंग्रेजो को ना हो ।
वर्तमान समय में कोई भी जातिगत नई रेजीमेंट या किसी लाइट इन्फैंट्री के गठन ना होने के कारण इस मुद्दे को पूर्णतया से ध्यान से हटा दिया गया है जिसके भविष्य में भी होने के आसार लगभग ना के बराबर है । लेकिन हमारे समाज को ये जानकारी जरुर होनी चाहिए की ऐसी बात नहीं है कि आपकी रेजीमेंट नहीं थी या बहादुर नहीं थे आपके #बागी_तेवरों को देखते हुए अंग्रेजो को खतरा था कि ये हमारे लिए लड़ने वाले बाकी सैनिकों को अपने तरफ कर हमारे खिलाफ ही युद्ध ना छेड़ दे जो कि #नेताजी_सुभाष_चन्द्र _बोस जी ने INA बनाकर कर दिया था और अंग्रेजो के लिए लड़ने वाले सैनिकों को अंग्रेजो के खिलाफ करा और भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
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