परमवीर चक्र विजेता मनोज पाण्डेय
परमवीर चक्र विजेता मनोज पाण्डेय
" मेरे रास्ते में मौत आई तो उसे भी मार दूँगा " यह वचन 24 साल की उम्र में देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले कैप्टेन मनोज पाण्डेय के हैं। कारगिल युद्ध मे पाकिस्तानी सेना ने ख़लूबर व कुकरथं जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र अपने कब्जे में लिए थे। ख़लूबर को जीतना इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि वहाँ से पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना की हर गतिविधियों को नजदीकी से देख रही थी ,ऊँचाई में स्थित होने के कारण ख़लूबर को जीतना काफी मुश्किल था। ख़लूबर , जुबार व कुकरथं मुश्किल चोंटी थीं यहाँ ऑक्सिजन की मात्रा बहुत काम थी ऊपर देखकर चलने से ही साँस फूलने लग जाती थी।
कारगिल युद्ध में गोरखा रेजिमेंट से कर्नल ललित राय अभियान की अगुवाई कर रहे थे। ख़लूबर जीतने की जिम्मेदारी उन्होंने मनोज पाण्डेय को दी थी। मनोज पांडेय जानते थे की अगर ख़लूबर में भारतीय सेना का कब्जा हो गया तो पाकिस्तानी सेना के अन्य ठिकाने कमजोर पड़ जाएंगे और उनको रसद भी नही मिल पाएगी। मनोज पाण्डेय अपने साथ गोरखा वीरो की सैन्य टुकड़ी लेकर निकल गए ख़लूबर जीतने। मनोज पाण्डेय के प्लाटून के साथ कर्नल राय भी थे। गोरखा राइफल्स में कर्नल राय व मनोज पाण्डेय में ही सारा दारोमदार टिका हुआ था। ख़लूबर छोटी के थोड़ा ऊपर चढ़ने पर ही पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के ऊपर गोलीबारी शुरू कर दी , सभी भारतीय सैनिकों को इधर से उधर बिखरना पड़ा . 60 से 70 मशीन गनें लगातार गोली बरसा रही थी ,गोलियों के साथ गोले भी बरस रहे थे।
ऊपर से बरसती हुई गोलियों को देखकर कर्नल दुविधा में पड़ गए तब नजदीकी में स्थित मनोज पांडेय ने अपनी टुकड़ी के साथ ऊपर चढ़ना स्वीकार किया । कैप्टेन मनोज पाण्डेय बर्फीली रातों में ही ऊपर चढ़ने लगे . मनोज पांडेय ऊपर चढ़कर दुश्मन के चार बंकरो को नष्ट कर दिया था। जब मनोज 3 बंकरो को नष्ट करने के बाद 4 बंकर की तरफ बढ़ने लगे तब दुश्मन की गोलियों से वो लहूलुहान हो गए । मनोज पाण्डेय गिरते वक्त कहे थे कि " मैं न छोडूंगा " मनोज ने तब ग्रनेड फेंककर चौथे बंकर को उड़ा दिया। इस प्रकार 24 वर्ष की उम्र में कैप्टेन मनोज पाण्डेय देश के लिए शहीद हो गए। मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया था ।
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