महाराणा_प्रताप_के_गुरु_ब्राह्मण शिरोमणि_आचार्य_राघवेंद्र_दास_जी 🙏

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#शस्त्र_शिक्षा_के_व_युध्द_निति_के_महारथी।।

महाराणा प्रताप के गुरु आचार्य राघवेन्द्र वैसे ही थे जैसे अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य या फिर चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य। गुरु राघवेन्द् जी मेवाड़ के निवासी थे। 

शस्त्र शिक्षा के बहुत बडे ज्ञानी थे वह तलवारबाजी घुड़सवारी एवं धनुर विद्या में परंपरागत थे एवं उन्होंने जब मुगल सेनापति बसर खान ने महाराणा प्रताप को मारने के लिए गुरुकुल पर हमला किया तब आचार्य ने भील व गुरुकुल के छात्रों को लेकर उसके खिलाफ युध्द किया व उन्होंने असद खान की हत्या कर दी एवं उस पर जीत दर्ज की व मेवाड के कुल दीपक महाराणा प्रताप की रक्षा की थी!!
इसके अलावा जब अफगान सेनापति शम्स खान ने हमला किया था तब आचार्य राघवेंद्र की ही अगुवाई में उसे हार का सामना करना पड़ा था ,एवं बैरम खान को भी हराने में आचार्य राघवेंद्र ने महाराणा प्रताप के साथ ही लड़ाई करके उसके सेना का दमन किया था!
आचार्य युद्ध नीतियो में भी निपुर्ण थे उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ सभी लड़ाई में भाग भी लिया था ।
इसके अलावा आचार्य राघवेंद्र दास ने अपना पूरा जीवन मेवाड़ को समर्पित कर दिया था जिस समय मेवाड़ में जौहर बरसी मनाया जाता है, उस समय राजपूत शस्त्र नहीं उठाते उस समय मुगलों ने राजपूती वेशभूषा में मेवाड़ पर हमला कर दिया था उस समय आचार्य राघवेंद्र ने गुरुकुल के छात्रों को भीलो के साथ मिलकर एव युध्द का नेत्रत्व करके मुगलों को हराकर मेवाड़ की रक्षा की थी! महाराणा प्रताप एक योग्य और भावी योद्धा तो थे ही पर गुरु राघवेन्द्र ने उन्हें अदभुद योद्धा और राजा बनने कि शिक्षा दी। महाराणा प्रताप ने अपने बचपन में ही बूंदी में होते अधर्म और मुग़ल पर्चे पर रोक लगाने के लिए वीर साखा का रूप धारण किया था। और आचार्य राघवेंद्र के नेतृत्व में बूंदी कि सेना को हराया था।इसके अलावा आचार्य हल्दीघाटी के युद्ध  मैं वह अष्ट प्रतिनिधि में से एक थे और एक प्रमुख योद्धा भी थे वह इस युद्ध को बहुत ही वीरता  से लड़े थे एवं जब महाराणा प्रताप खतरे में आए तो उन्हे सुरक्षित उस युद्ध से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया था
एवं जब महाराणा प्रताप खतरे में आए तो उन्हे सुरक्षित उस युद्ध से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया था एवं हल्दीघाटी युद्ध में से जीवित योध्या में से एक वह भी थे !इसके बाद उन्होंने कुंवर अमर सिंह को पुनः मेवाड़ में स्थापित किया था एवं उन्हें कूटनीतिक शस्त्र शास्त्र , राजनीति पकड़ व युध्द कला में निपुड़ करने मे भी मदद की थी! आचार्य ने हल्दी घाटी से लेके हर युध्द के निति को बनाया जिशे 20 हज़ार की सेना होते हुए भी 50 हज़ार मुगलो पे भारी पड़े थे मेवाड वाशि। 

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