सूबेदार बाले तिवारी, मेजर ध्यानचंद के गुरु। (फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट)
सूबेदार बाले तिवारी, मेजर ध्यानचंद के गुरु
इस बात का जिक्र किताब 'द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ मेजर ध्यानचंद' में भी किया गया है जिसकी लेखक रचना भोला यामिनी हैं। इस किताब में बताया गया कि एक बार ध्यानसिंह ऐसे ही हाॅकी लेकर बाॅल को मार रहे थे,वहीं पास खड़े सूबेदार बाले तिवारी यह सब देख रहे थे। सूबेदार बाले ने ध्यानसिंह को बताया कि हाॅकी कोई बच्चों का खेल नहीं, इसके बाद उन्होंने ध्यानसिंह को हाॅकी की टेक्निक बताई।धीरे-धीरे समय गुजरता गया, ध्यानसिंह हाॅकी की कड़ी ट्रेनिंग लेते रहे। वह दिन-रात की परवाह किए बगैर, बस हाथ में हाॅकी स्टिक लेकर मैदान में जुट जाते थे। यही नहीं चांद की रोशनी में भी ध्यानसिंह हाॅकी की प्रैक्टिस करना नहीं भूलते थे।
हॉकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद. भारतीय हॉकी की शान. भारत के आजाद होने से दुनिया भर में भारतीय खेलों का नाम और मान हॉकी और सिर्फ हॉकी रही. ध्यानचंद ने भारत को आजादी से पहले 1928, 1932 और 1936 -लगातार 3 ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाए. कुल 3 ओलंपिक गेम्स में ध्यानचंद ने भारत के लिए कुल 39 गोल किए. विश्व युद्ध के चलते 1940 और 1944 के ओलंपिक नहीं हुए अन्यथा ध्यानचंद संभव: लगातार 5 ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक जिताने का रिकॉर्ड बना देते.
आजादी से खेलों में दुनिया में भारत की पहचान हॉकी और सिर्फ हॉकी थी. भारत को खेलों में पहचान दिलाने वाले थे केवल और केवल हॉकी के जादूगर ध्यानचंद. ध्यानचंद की हॉकी का जादू ऐसा था कि हर किसी के सिर चढ़ कर बोलता था। ध्यानसिंह के इस खेल के प्रति जुझारूपन देखकर एक दिन बाले तिवारी ने हाॅकी के जादूगर को अपने पास बुलाया और कहा आज से तुम चांद की तरह चमकने वाले हो, बस फिर क्या ध्यानचंद का नाम हाॅकी जगत में स्वर्ण अक्षरों से लिख गया।
Comments
Post a Comment