तीन ब्राह्मण लड़कियों की आज़ादी के संग्राम की दास्तान है प्रतिलिता कि कहानी।
तीन ब्राह्मण लड़कियों की आज़ादी के संग्राम की दास्तान है प्रतिलिता कि कहानी।
इतिहास के गुमनामी के पन्नों में डाल दी गयी एक महान क्रांतिकारी शहीद : प्रतिलिता वड्डेदर (फोटो left side पर)। जो मात्र 21 वर्ष की आयु में देश के लिए हुई शहीद।
प्रतिलिता का जन्म एक बंगाली वैद ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह जब स्कूल में पढ़ती थीं तो उनकी परम् मित्र थीं ब्राह्मण कन्या कल्पना दत्त जोशी(right से ऊपर वाला फोटो एक दिन कक्षा में अध्यापिका ने उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके आज़ादी के प्रति बलिदान के बारे में पढ़ाया,
इस पाठ का दोनों बलिकायों पर बहुत असर हुआ। दोनों के घर के सदस्य पहले से ही क्रांति की मशाल उठाये लड़ रहे थे।थोड़ी बड़ी होते ही दोनों क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गयीं। दोनों ने 20 साल की आयु तक अपना graduation खत्म किया और पूर्ण रूप से अपना जीवन स्वतन्त्रता संग्राम को दे दिया।
इसके बाद वह हिंदुस्तान republic army की सदस्य बन गईं। यहां से शुरू हुई इनके हथियारबन्द इंकलाब की कहानी। यहीं इनकी मुलाकात हुई कमलादेवी चट्टोपाध्याय से (फोटो right से नीचे वाला)। कमला भी एक बंगाली ब्राह्मण परिवार से ही थीं।
इन तीनों का मुख्य काम ढाका या चिटगांव से हथियार कलकत्ता लाना रहता था जिसे आगे देशभर में भेजा जाता था। इसके अलावा गर्म दल के क्रांतिकारी साहित्य को लिखने, छापने और बांटने का काम भी यह करती थीं। हिंदुस्तान republican army का एक महिला दस्ता तैयार किया गया। मात्र 21 वर्ष की प्रतिलिता अब तक हथियार चलाने, बम बनाने में माहिर हो चुकी थीं। उन्हें इस दस्ते की 16 लड़कियों की कमांडर बनाया गया। प्रतिलिता ने इस तरह कई क्रांतिकारी तैयार किये
September, 1932 की एक शाम को सूचना मिली कि चिटगांव में ब्रिटिश सरकार के english club में एक बोर्ड लगा दिया गया है "dogs and Indians are not allowed". यह सूचना मिलने पर प्रतिलिता का दिल दहल उठा। उन्होंने अंग्रेजों को सबक सिखाने की सोची। इसके लिए उन्होंने अपने बचपन की सहेली कल्पना को साथ लिया। कमला को भी इस प्लान का हिस्सा बनाया गया। मकसद था english club में धमाका करना।
इसके लिए इन तीनों ने बारूद का इंतजाम किया। प्रतिलिता औए कल्पना ने मिलकर बम बनाया। कमला ने जरूरी जानकारी एकत्रित की। प्लान था कि शाम को खाली हो जाने के बाद english club पर बम फेंका जाएगा।
अगर जरूरत हुई तो पहले प्रतिलिता और फ़िर कल्पना मानव बम बनकर जाएंगी और उस इमारत को गिरा देंगी। कमला इसके बाद इस कहानी को क्रांति के साहित्य से आम लोगों तक पहुंचाएगी,
पर धमाके की तयशुदा तारीख से एक दिन पहले एक गद्दार शोभा सिंह ने अंग्रेजों को मुखबिरी कर दी। कल्पना दत्त को इलाके की रेकी करते हुए पकड़ लिया गया। प्रतिलिता को भी पुलिस ने घेर लिया। मात्र 21 वर्ष की आयु में प्रतिलिता का दृढ़ संकल्प था कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगी।
इसी कारण वह साइनाइड का कैप्सूल हमेशा अपने पास रखती थीं। पुलिस द्वारा घेर लिए जाने पर उन्होंने वहीं मौके पर साइनाइड खाकर शहादत ले ली। कल्पना को 1939 तक साजिश के आरोप में जेल में रखा गया। कमला को भी सजा हुई पर सबूतों के अभाव में कुछ एक वर्ष बाद जमानत मिल गई।
आज प्रतिलिता वड्डेदर को कौन जानता है ?? कौन याद करता है?? कुछ लोगों का मानना है कि एक लाठी लेकर आंदोलन करने वाले को आज़ादी का बापू बता देते हैं। और कुछ तो भारत को मुगलों से मुक्ति दिलवाने वाले ब्राह्मण पेशवा राजवंश पर अंग्रेजों की विजय का जश्न मनाने से भी नहीं चूकते। अगर आप ऐसे लोगों में से नहीं हैं तो इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें।प्रतिलिता अमर रहें। उनका नाम भारत के उन तमाम महापुरुषों के समकक्ष किसी भी तरह कम नहीं है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण दिए। गर्व है कि ऐसा करने वाले 80% से अधिक ब्राह्मण समाज के वीर थे।
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