अपराजित योद्धा बाजीराव पेशवा
बाजीराव बल्लाल भट्ट का इतिहास
बाजीराव का परिचय : पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त सन् 1700 को एक ब्राह्मण भट्ट परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधाबाई के घर में हुआ था। पिताजी छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे। बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा। बाजीराव अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे।पेशवा बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था जिसके 3 पुत्र थे- बालाजी बाजी राव, रघुनाथ राव जिसकी बचपन में भी मृत्यु हो गई थी। पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी का नाम था मस्तानी,जो छत्रसाल के राजा की बेटी थी बाजीराव उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उनके लिए पुणे के पास एक महल भी बाजीराव ने बनवाया जिसका नाम उन्होंने 'मस्तानी महल रखा।सन 1734 में बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया ।पेशवा बाजीराव, जिन्हें बाजीराव प्रथम भी कहा जाता है, मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के 4थे प्रधानमंत्री थे। बाजीराव ने अपना प्रधानमंत्री का पद सन् 1720 से अपनी मृत्यु तक संभाला।
उनको बाजीराव बल्लाल भट्ट और थोरल बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है।इतिहास के अनुसार बाजीराव घुड़सवारी करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे और यह माना जाता है कि उनसे अच्छा घुड़सवार सैनिक भारत में आज तक देखा नहीं गया। उनके 4 घोड़े थे- नीला, गंगा, सारंगा और औलख! उनकी देखभाल वे स्वयं करते थे। बाजीराव 6 फुट ऊंचे थे,उनके हाथ भी लंबे थे। बलिष्ठ, तेजस्वी, कांतिवान, तांबई रंग की त्वचा उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाती थी। न्यायप्रिय बाजीराव को सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पसंद थे। पूरी सेना को वे सख्त अनुशासन में रखते थे। अपने भाषण से वे सेना में जोश भर देते थे उनके हाथ भी लंबे थे बलिष्ठ,तेजस्वी कांतिवान, तांबई रंग की त्वचा उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाती थी।न्यायप्रिय बाजीराव को सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पसंद थे।पूरी सेना को वे सख्त अनुशासन में रखते थे।अपने भाषण से वे सेना में जोश भर देते,
मराठा साम्राज्य के पेशवा :
सन् 1720 में उनके पिता विश्वनाथ की मृत्यु हो गई। उसके बाद बाजीराव को 20 साल की आयु में पेशवा के पद पर नियोजित किया गया।बाजीराव के पेशवा पद पर आते ही छत्रपति शाहू नाम मात्र के ही शासक बन गए और खासकर सतारा स्थित उनके आवास तक ही सीमित रह गए।
मराठा साम्राज्य कुंके नाम पर तो चल रहा था, पर असली ताकत पेशवा बाजीराव के हाथ में ही थी।
सबसे पहले बाजीराव पेशवा का नाम आता है बाद में महाराणा प्रताप शिवाजी का नाम आता है जिन्होंने मुगलों से लंबे समय तक लोहा लिया। बाजीराव बल्लाल भट्ट एक महान योद्धा थे।
निजाम,मोहम्मद बंगश से लेकर मुगलों और पुर्तगालियों तक को कई-कई बार शिकस्त देने वाले बाजीराव के समय में महाराष्ट्र गुजरात,मालवा,बुंदेलखंड सहित 70 से 80 फीसदी भारत पर उनका कब्जा था। इतिहास में ऐसे कई वीर हुए हैं जिन्होंने मुगलों को दिल्ली तक ही समेट दिया था।उनमें से एक थे बाजीराव, हालांकि आरोप है कि भारत के ऐसे वीरों को आजादी के बाद के शिक्षामंत्रियों और वामपंथी इतिहाकारों ने बड़ी चालाकी से इतिहास से हटाकर मुगल इतिहास को महिमामंडित किया। जो युद्ध से पहले 'हर-हर महादेव' का नारा भी लगाना नहीं भूलते थे। अटक से कटक तक केसरिया लहराने का और हिन्दू स्वराज लाने का सपना जो छत्रपति शिवाजी महाराज ने देखा था उसे काफी हद तक पेशवा बाजीराव ने पूरा किया।होलकर, सिंधिया, पवार, शिंदे गायकवाड़ जैसी ताकतें जो बाद में अस्तित्व में आईं, वे सब पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की देन थीं।ग्वालियर, इंदौर, पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं। बुंदेलखंड की रियासत बाजीराव के दम पर जिंदा थी, छत्रसाल की मौत के बाद उनका तिहाई हिस्सा भी बाजीराव को मिला। हिन्दुस्तान के इतिहास के बाजीराव अकेला ऐसा योद्धा था जिसने 43 लड़ाइयां लड़ीं और एक भी नहीं हारीं। वर्ल्ड वॉर सेकंड में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे मशहूर सेनापति जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर' में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की है और लिखा है कि बाजीराव कभी हारा नहीं। आज वो किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है।बाद में यही आक्रमण शैली सेकंड वर्ल्ड वॉर में अपनाई गई जिसे 'ब्लिट्जक्रिग' बोला गया। अमेरिकी सेना ने उनकी पालखेड़ की लड़ाई का एक मॉडल ही बनाकर रखा है। जिस पर सैनिकों को युद्ध तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है।
बाजीराव का युद्ध रिकॉर्ड छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप से भी अच्छा माना जाता है। नर्मदा पार सेना ले जाने वाला और 400 वर्ष की यवनी सत्ता को दिल्ली में जाकर ललकारने वाला बाजीराव पहला मराठा था।
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