रक्तसाक्षी पंडित लेखराम भीमवाल
रक्तसाक्षी पंडित लेखराम भीमवाल “आर्य मुसाफिर”
जन्म– आठ चैत्र विक्रम संवत् १९१५ को ग्राम सैदपुर जिला झेलम पश्चिमी पंजाब | पिता का प.तारासिंह भीमवाल व माता का नाम भागभरी(भरे भाग्यवाली]) था | १८५० से १८६० ई. एक एक दशाब्दि में भारत मेंकई नर नामी वीर, जननायक नेता व विद्वान पैदा हुए | यहाँ ये बताना हमारा कर्त्तव्य है कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के हुतात्मा खुशीरामजी का जन्म भी सैदपुर में ही हुआ था | वे भी बड़े दृढ़ आर्यसमाजी थे | आर्यसमाज के विख्यात दानी लाला दीवानचंदजी इसी ग्राम में जन्मे थे | पण्डितजी के दादा का पं.नारायण सिंह था | आप महाराजा रणजीतसिंह की सेना के एक प्रसिद्द योध्या थे | आर्यसमाज में पण्डितजी का स्थान बहुत ऊँचा है | धर्मरक्षा के लिए इस्लाम के नाम पर एक मिर्जाई की छूरी से वीरगति पाने वाली प्रथम विभूति पं.लेखराम ही थे | आपने मिडिल तक उर्दू फ़ारसी की शिक्षा अपने ग्राम में व पेशावर में प्राप्त की | फ़ारमुग़लकाल के बाद सी के सभी प्रमाणिक साहित्यिक ग्रन्थों को छोटी सी आयु में पढ़ डाला | अपने चाचा पं.गण्डाराम के प्रभाव में पुलिस में भर्ती हो गए | आप मत, पन्थो का अध्ययन करते रहे | प्रसिद्द सुधारक मुंशी कन्हैयालाल जी के पत्र नीतिप्रकाश से महर्षि दयानन्द की जानकारी पाकर ऋषि दर्शन के अजमेर गए | १७ मई १८८१ को अजमेर में ऋषि के प्रथम व अंतिम दर्शन किये, शंका-समाधान किया | उपदेश सुने और सदैव के लिए वैदिक-धर्म के हो गए | सत्यनिष्ठ धर्मवीर, वीर विप्र लेखरामजी का चरित्र सब मानवों के लिए बड़ा प्रेरणादायी है | इस युग में विधर्मियों की शुद्धि के लिए सबसे अधिक उत्साह दिखाने वाले पं.लेखराम ही थे, इस कार्य के लिए उन्होंने अपना जीवन दे दिया| आज हिन्दू समाज उनके पुनीत कार्य को अपना रहा है | परन्तु खेद की बात है कि आर्यसमाज मन्दिरों के अतिरिक्त किसी हिन्दू के घर या संघठन में पण्डितजी का चित्र नही मिलता | आर्यों की संतान इन हिन्दुओं को नही भूलना चाहिए कि विदेशी शासकों के पोषक व प्रबल समर्थक इन्हीं मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने अपनी एक पुस्तक में हिन्दुओं को “सैदे करीब” लिखा था | इसका अर्थ है कि हिन्दू तो मुसलमानों की पकड़ में शीघ्र आनेवाला शिकार है | पण्डितजी अडिग ईश्वरविश्वासी, महान मनीषी, स्पष्ट वक्ता, आदर्श धर्म-प्रचारक, त्यागी तपस्वी, लेखक, गवेषक, और बड़े पवित्र आत्मा थे | एक बार पण्डितजी ने आर्यसमाज पेशावर के मंत्री श्री बाबू सुर्जनमल के साथ अफगानिस्तान में ईसाई मत के प्रचारक पादरी जोक्स से पेशावर छावनी में भेंट की | पादरी महोदय ने कहा कि बाइबिल में ईश्वर को पिता कहा गया है | ऐसी उत्तम शिक्षा अन्यत्र किसी ग्रन्थ में नहीं है | पण्डितजी ने कहा “ऐसी बात नही है | वेद और प्राचीन आर्य ऋषियों की बात तो छोड़िये अभी कुछ सौ वर्ष पहले नानकदेव जी महाराज ने भी बाइबिल से बढ़कर शिक्षा दी है| पादरी ने पूछा कहाँ है ?? पण्डितजी ने कहा देखिये— “ तुम मात पिता हम बालक तेरे | तुमरी किरपा सुख घनेरे || “ यहाँ ईश्वर को पिता ही नही माता भी कहा गया है| ये शिक्षा तो बाइबिल की शिक्षा से भी बढ़कर है| माता का प्रेम पिता के प्रेम से कहीं अधिक होता है | इसीलिए ईसा मसीह को युसूफ पुत्र न कहकर इबने मरियम (मरियम पुत्र) कहा जाता है | ये सुनकर पादरी महोदय ने चुप्पी साध ली | इसी प्रकार अजमेर में पादरी ग्रे(Grey) ने भी इसी प्रकार का प्रश्न उठाया तब पण्डितजी ने यजुर्वेद मंत्र संख्या ३२/१० का प्रमाण देकर उनकी भी बोलती बंद कर दी थी | रोपड़ के पादरी पी सी उप्पल ने एक राजपूत युवक को बहला-फुसलाकर ईसाई बना लिया, पण्डितजी को सुचना मिली तो वे रोपड़ पहुंचे, तब तक रोपड़ के दीनबंधु सोमनाथजी ने उसे शुद्ध कर लिया था | पण्डितजी ने रोपड़ पहुंचकर मंडी में लगातार कई दिन तक बाइबिल पर व्याख्यान दिए | पादरी उप्पल को लिखित व मौखिक शास्त्रार्थ के लिए निमंत्रण दिया | उप्पल महोदय ने चुप्पी साध ली | घटना अप्रैल १८९५ की है | मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने ‘सत बचन’ नाम से एक पुस्तक छापी | उसमें यह सिद्ध करने का यत्न किया कि बाबा नानकदेवजी पक्के मुसलमान थे | इस पुस्तक के छपने पर सिखों मरण बड़ी हलचल मची | तब प्रतिष्ठित सिखों ने पण्डितजी से निवेदन किया वे इसका उत्तर दें | उस समय पण्डितजी के सिवा दूसरा व्यक्ति इसका उत्तर देने वाला सूझता भी नही था | बलिदान से पूर्व इस विषय पर एक ओजस्वी व खोजपूर्णव्याख्यान देकर मिर्ज़ा साहेब की पुस्तक का युक्ति व प्रमाणों से प्रतिवाद किया| भारी संख्या में सिख उन्हें सुनने आये, सेना के सिख जवान भी बहुत बड़ी संख्या में वहां उपस्थित थे | आपके व्याख्यान के पश्चात् सेना के वीर सिख जवानों ने पण्डितजी को ऐसे उठा लिया जैसे पहलवान को विजयी होने पर उसके शिष्य उठा लेते हों | पं.लेखरामजी धर्म रक्षा के लिए संकटों, आपत्तियों और विपत्तियों का सामना किया | उनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि मानों बड़े से बड़े संकट को भी वो कोई महत्व नही देते थे | उनके पिताजी की मृत्यु हुई तो भी वे घर में न रुक सके | बस गए और चल पड़े | उन्हें भाई की मृत्यु की सूचना प्रचार-यात्रा में ही मिली, फिर भी प्रचार में ही लगे रहे | एक कार्यक्रम के पश्चात् दुसरे और दुसरे के पश्चात् तीसरे में| इकलौते पुत्र की मृत्यु से भी विचलित न हुए | पत्नी को परिवार में छोड़कर फिर चल पड़े | दिन रात एक ही धुन थी कि वैदिक धर्म का प्रचार सर्वत्र करूँ | पंडित लेखराम तो जैसे साक्षात् मृत्यु को ललकारते थे| कादियां का मिर्ज़ा गुलाम अहमद स्वयं को नबी पैगम्बर घोषित कर रहा था और पण्डितजी को मौत की धमकियाँ दे रहा था | उसने श्रीराम पर श्रीकृष्ण पर, गौ पर, माता कौशल्या पर, नामधारी गुरु रामसिंह पर, महर्षि दयानन्द, वेद और उपनिषद इत्यादि सब गन्दे-गन्दे प्रहार किये | उसने श्रीकृष्ण महाराज को तो सुअर मारने वाला लिखा | पर यहाँ पं.लेखराम धर्म पर उसके प्रत्येक वार का उत्तर देते थे | जब पण्डितजी सामने आते तो खुद को शिकारी कहने वाला बिल में छुप जाता | अपने बलिदान से एक वर्ष पूर्व पण्डितजी लाहौर रेलवे स्टेशन के पास एक मस्जिद में पहुंचे, उन्हें पता चला कि मिर्ज़ाजी वहां आये हैं | मिर्ज़ा उनकी हत्या के षड्यंत्रों में लगा था| जाते ही मिर्ज़ा को नमस्ते करके सच और झूठ का निर्णय करने का निमंत्रण दे दिया | विचार करिए जिस व्यक्ति से मृत्यु लुकती-छिपती थी और नर नाहर लेखराम मौत को गली-गली खोजता फिरता था | मौत को ललकारता हुआ लेखराम मिर्ज़ा के घर तक पहुंचा| कादियां भी मिर्ज़ा के इलहामी कोठे में जाकर उसे ललकारा | आत्मा की अमरता के सिद्धांत को मानकर मौत के दांत खट्टे करने लेखराम जैसे महात्मा विरले होते हैं | पण्डितजी ने हिन्दू-जाति की रक्षा के लिए क्या नही किया ?? स्यालकोट में सेना के दो सिख जवान मुसलमान बनने लगे | जब सिख विद्वानों के समझाने पर भी वे नही टेल तप सिंघसभा वालों ने आर्यसमाजियों से कहा पं.लेखराम को शीघ्र बुलाओ | पण्डितजी आये | उन युवकों का शंका-समाधान किया, शास्त्रार्थ हुआ और वे मुसलमान बनने से बचा लिए गए | जम्मू में कोई ठाकुरदास मुसलमान होने लगा तो पण्डितजी ने जाकर उसे बचाया | एल लाला हरजस राय मुसलमान हो गए | ये प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे थे | फारसी, अरबी, अंग्रेजी के बड़े ऊँचे विद्वान थे | हरजस राय का नाम अब मौलाना अब्दुल अज़ीज़ था | वह गुरुदासपुर में Extra Assistant Commisiner रहे थे | यह सबसे बड़ा पद था जो भारतीय तब पा सकते थे | पण्डितजी कृपा से वे शुद्ध होकर पुनः हरजस राय बन गए| एक मौलाना अब्दुल रहमान तो पण्डितजी के प्रभाव से सोमदत्त बने | हैदारबाद के एक योग्य मौलाना हैदर शरीफ पर आपके साहित्य का ऐसा रंग चढ़ा कि हृदय बदल गया | वे वैदिक धर्मी बन गए | मौलाना शरीफ बहुत बड़े कवि थे | एक बार पण्डितजी प्रचारयात्रा से लाहौर लौटे तो उन्हें पता चला कि मुसलमान एक अभागी हिन्दू युवती को उठाकर ले गए हैं | पण्डितजी ने कहा मुझे एक सहयोगी युवक चाहिए मैं उसे खोजकर लाऊंगा | पण्डितजी युवक को लेकर मस्जिदों में उसकी खोज में निकले | उन्होंने एक बड़ी मस्जिद में एक लड़की को देखा | भला मस्जिद में स्त्री का क्या काम ? यह आकृति में ही हिन्दू दिखाई दी | पण्डितजी ने उसकी बांह पकड़कर कहा “चलो मेरे साथ |” शूर शिरोमणि लेखराम भीड़ को चीरकर उस अबला को ले आये | आश्चर्य की बात तो यह है कि उस नर नाहर को रोकने टोकने की उन लोगों की हिम्मत ही न हुई | इसी कारण देवतास्वरूप भाई परमानन्द जी कहा करते थे कि डर वाली नस-नाड़ी यदि मनुष्यों में कोई होती है तो पं.लेखराम में वो तो कत्तई नही थी | पं.लेखराम जी ने ‘बुराहीने अहमदियों’ के उत्तर में ‘तकजीबे बुराहीने अहमदिया’ ग्रन्थ तीन भागों में प्रकाशित करवाया | इसके छपने के साथ ही धूम मच गयी | ईसाई पत्रिका ‘नूर अफशां’ में भी इसकी समीक्षा करते हुए पण्डितजी की भूरी-भूरी प्रशंसा की | पण्डितजी इस मामले में आर्य समाज में एक परम्परा के जनक भी हैं, विरोधी यदि कविता में आर्य-धर्म पर प्रहार करते थे तो पण्डितजी कविता में ही उत्तर देते थे | जिस छंद में प्रहारकर्ता लिखता, पण्डितजी उसी छंद में लिखते थे | मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी ने पण्डितजी को मौत की धमकियाँ देकर वेद-पथ से विचलित करना चाहा| पण्डितजी ने सदा यही कहा मुझे जला दो, मार दो, काट दो, परन्तु मैं वेद पथ से मुख नही मोड़ सकता | इसी घोष के अनुसार एक छलिया उनके पास शुद्धि का बहाना बनाकर आया | उनका नमक खता रहा | उनका चेला बनने का नाटक किया | पण्डितजी महर्षि दयानन्द का जीवन चरित्र लिखते-लिखते थक गए तो अंगडाई ली | अंगड़ाई लेते हुए अपनी छाती को खोला तो वो नीच वहीँ बैठा था, उसने कम्बल में छुरा छुपा रखा था | क्रूर के सामने शूर का सीना था, पास कोई नही था | उस कायर ने पण्डितजी के पेट में छूरा उतार दिया और भाग निकला | वो तारीख थी ६ मार्च १८९७ | उपसंहार—धर्मवीर पं.लेखराम की महानता का वर्णन करने में लेखनी असमर्थ है | स्वामी श्रद्धानंद जैसे नेता उनका अदब मानते थे | सनातन धर्म के विद्वान और नेता पं.दीनदयाल व्याख्यान वाचस्पति कहते थे कि पं.लेखराम के होते हुए कोई भी हिन्दू जाति का कुछ नही बिगाड़ सकता | ईसाई पत्रिका का सम्पादक उनकी विद्वत्ता पर मुग्ध था | उनके बलिदान पर अमेरिका की एक पत्रिका ने उनपर लेख छापा था | ‘मुहम्मदिया पाकेट’ के विद्वान लेखक मौलाना अब्दुल्ला ने तो उन्हें ‘कोहे वकार’ अर्थात गौरव-गिरी लिखा है , पर पण्डितजी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, वेदों को जीवन भर पानी पी पीकर कोसने वाला मिर्ज़ा भी मरते वक़्त वेदों को ईश्वरीय ज्ञान लिखकर जाता है | पण्डितजी हम और क्या लिखे ! अपनी बात को महाकवि ‘शंकर’ के शब्दों में समाप्त करते है—– धर्म के मार्ग में अधर्मी से कभी डरना नही | चेत कर चलना कुमारग में कदम धरना नही || शुद्ध भावों में भयानक भावना भरना नही | बोधवर्धक लेख लिखने में कमी करना नहीं ||
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